Sunday, November 27, 2011

(-: *मैं * :-)


एक था "मैं"....

वो मिला "तुम" से ...

दोनों ने "हम" होने के सपने देखें..

फिर एक "वो" आया...

और न चाहते हुए भी "तुम " को उसके साथ जाना पड़ा ....

और "मैं" अकेला रह गया ...

"सिर्फ मैं " !!

Sunday, September 4, 2011

**बस यूँ ही **


एक सर्द शाम खिड़की पर बैठी सोच रही थी बस यूँ ही,
कुछ थे सवाल जिनके जवाब मैं ढूंढ रही थी बस यूँ ही
जवाब में उनके ख्याल आते थे मुझको बार बार ,
सोचकर तन्हा ही मैं हंस पड़ी थी बस यूँ ही
ओस की इक बूँद सी आकार गिरी फिर चेहरे पर ,
हँसते-हँसते इस कदर मैं रो पड़ी थी बस यूँ ही
शाम वो गुजर गयी उनके ख्यालों में यूँ ही ,
काश कट जाये जिंदगी यादों में उन्ही के बस यूँ ही ॥ :):)

Tuesday, June 14, 2011

तो कुछ और बात होती...:)



मेरे तुम्हारे इश्क की इतनी ही है कहानी
गर मिल जो हम पाते तो कुछ और बात होती...
दिल तो हमारे एक सी बोली हैं बोलते
जबाँ भी बोल पाती तो कुछ और बात होती...
यूँ तो इश्क अपना दोनों को ही पता है
ज़माने को बता पाते तो कुछ और बात होती...
ख्वाबों में तो अक्सर ही होती हैं मुलाकाते
हकीकत में जो मिल पाते तो कुछ और बात होती...
अकेले भी कट जाते हैं जिंदगी के रास्ते
गर साथ तुम्हारा पाते तो कुछ और बात होती...
वैसे तो है इश्क का सफ़र बड़ा सुहाना
मंजिल भी जो मिल जाती तो कुछ और बात होती... :):)

Sunday, May 15, 2011

दायरा (भाग दो )

अब चिड़िया वयस्क हो चुकी थी...उसने कई नए दोस्त बनाये...और अब वो हर समय कुछ कुछ नया करने की...जानने की इच्छा रखती थी...और उसने काफी कुछ किया भी...उसके सभी दोस्त उसे बहुत प्यार करते थे...और क्यूँ करे वो थी भी तो कितनी प्यारी....उसके सभी साथियों में एक चिड़ा भी था उन दोनों की काफी बनती थी...पर जाने कब कैसे वो चिड़ा उस चिड़िया को मन ही मन चाह बैठा...चिड़िया को इस बात की थोड़ी भी खबर नहीं थी...वह तो उसके लिए एक साथी मात्र था जिसके साथ रहना घंटे बातें करना उसे अच्छा लगता था...इसके आगे तो उसने कभी कुछ सोचा ही नहीं था या यूँ कहे कि उसकी समझ में ही नहीं आता था...

चिड़े ने जब अपने मन का हाल उससे कहा तो उसे पहले तो समझ ही नहीं आया ऐसा हुआ क्यूँ ...फिर उसने सोचा कि क्या उसने कुछ ऐसा किया जिससे चिड़े के मन में उसे लेकर
इस तरह के विचार भी आये...चिड़िया हमेशा से यही सोचती आई थी कि प्यार-व्यार जैसी
चीज़ें उसके लिए नहीं हैं...वो खुद को इन सब बातों से दूर ही रखती थी अतः उसने चिड़े को
न में उत्तर दे दिया...पर चिड़े ने उसे फिर से सोचने को कहा और कहकर वहाँ से चला
गया...उस दिन के बाद वह जब भी चिड़े के बारे में सोचती उसका झुकाव उसकी तरफ बढ़ता जाता....पर जैसे ही उसे अपने परिवार का ख्याल आता वह अपनी सोच पर काबू कर फिर से अपनी पुरानी सोच प्यार-व्यार जैसी चीज़ मेरे लिए नहीं है लेकर बैठ जाती थी...दिन बीते समय बदला और बदलते समय के साथ चिड़िया कि सोच भी बदल गयी...शायद प्यार के अहसास ने उसके मन पर भी दस्तक दी थी...पर समय भला कब किसी का इंतज़ार करता है...चिड़ा अब जा चुका था एक नए राह पर....चिड़िया कि जिंदगी एक बार फिर बदल चुकी थी...उसने फिर एक बार खुद को एक दायरे में सीमित करना शुरू कर दिया और उसने सोचा इस बार वह अपने और बाहरी दुनिया के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी करेगी कि कोई भी बाहर का व्यक्ति उसे तोड़ न पाए...और वह एक बार फिर अपने परिवार और कुछ साथियों के बीच ही सीमित होकर रह गयी...पर वह खुश थी क्योकि उसकी असली दुनिया तो यही थी...:):):)