Friday, February 26, 2010

वास्तविकता


बार बार हर बार
दिल को बहलाती हूँ मैं 
जो सोच रही वो सही नहीं 
ये ही बतलाती हूँ मैं ।
पर जिंदगी हरदम मुझे 
ये ही समझती है । 
जो वास्तविकता है
उसे तू क्यूँ झूठलाती है ।
जिंदगी से बस
इतना ही कहती हूँ मैं ।
अच्छा है अपने सपनों की 
दुनिया में रहती हूँ मैं । 
वास्तविकता को अगर माना 
तो कैसे जी पाऊंगी,
जिंदगी को गीत बनाकर
कैसे फिर गाऊँगी ???


जिंदगी को गीत बनाकर
कैसे फिर गाऊँगी ???:):)

सुनहरे पल



चलते चलते ये कहाँ आ गयी हूँ मैं ,
कोई भी चेहरा पहचाना नहीं लगता।
किसी से भी रिश्ता पुराना नहीं लगता ,
जाने कहाँ गए वो पहचाने हुए चेहरे ,
कल तक लगते थे जो मुझे मेरे
आज है तन्हाई कोई पास नहीं है ,
किसी से अपनेपन का अहसास नहीं है
ढूंढती है नजरें उनको ही आजकल ,
कल तक जो होते थे साथ हर पल
सोचती हूँ तन्हा बैठे मैं हर पल,
क्या लौटकर आयेंगे मेरे सुनहरे पल ???:(