बार बार हर बार
दिल को बहलाती हूँ मैं
।
जो सोच रही वो सही नहीं
ये ही बतलाती हूँ मैं ।
पर जिंदगी हरदम मुझे
ये ही समझती है ।
जो वास्तविकता है
उसे तू क्यूँ झूठलाती है ।
जिंदगी से बस
इतना ही कहती हूँ मैं ।
अच्छा है अपने सपनों की
दुनिया में रहती हूँ मैं ।
वास्तविकता को अगर माना
तो कैसे जी पाऊंगी,
जिंदगी को गीत बनाकर
कैसे फिर गाऊँगी ???
जिंदगी को गीत बनाकर
कैसे फिर गाऊँगी ???:):)