Sunday, May 15, 2011

दायरा (भाग दो )

अब चिड़िया वयस्क हो चुकी थी...उसने कई नए दोस्त बनाये...और अब वो हर समय कुछ कुछ नया करने की...जानने की इच्छा रखती थी...और उसने काफी कुछ किया भी...उसके सभी दोस्त उसे बहुत प्यार करते थे...और क्यूँ करे वो थी भी तो कितनी प्यारी....उसके सभी साथियों में एक चिड़ा भी था उन दोनों की काफी बनती थी...पर जाने कब कैसे वो चिड़ा उस चिड़िया को मन ही मन चाह बैठा...चिड़िया को इस बात की थोड़ी भी खबर नहीं थी...वह तो उसके लिए एक साथी मात्र था जिसके साथ रहना घंटे बातें करना उसे अच्छा लगता था...इसके आगे तो उसने कभी कुछ सोचा ही नहीं था या यूँ कहे कि उसकी समझ में ही नहीं आता था...

चिड़े ने जब अपने मन का हाल उससे कहा तो उसे पहले तो समझ ही नहीं आया ऐसा हुआ क्यूँ ...फिर उसने सोचा कि क्या उसने कुछ ऐसा किया जिससे चिड़े के मन में उसे लेकर
इस तरह के विचार भी आये...चिड़िया हमेशा से यही सोचती आई थी कि प्यार-व्यार जैसी
चीज़ें उसके लिए नहीं हैं...वो खुद को इन सब बातों से दूर ही रखती थी अतः उसने चिड़े को
न में उत्तर दे दिया...पर चिड़े ने उसे फिर से सोचने को कहा और कहकर वहाँ से चला
गया...उस दिन के बाद वह जब भी चिड़े के बारे में सोचती उसका झुकाव उसकी तरफ बढ़ता जाता....पर जैसे ही उसे अपने परिवार का ख्याल आता वह अपनी सोच पर काबू कर फिर से अपनी पुरानी सोच प्यार-व्यार जैसी चीज़ मेरे लिए नहीं है लेकर बैठ जाती थी...दिन बीते समय बदला और बदलते समय के साथ चिड़िया कि सोच भी बदल गयी...शायद प्यार के अहसास ने उसके मन पर भी दस्तक दी थी...पर समय भला कब किसी का इंतज़ार करता है...चिड़ा अब जा चुका था एक नए राह पर....चिड़िया कि जिंदगी एक बार फिर बदल चुकी थी...उसने फिर एक बार खुद को एक दायरे में सीमित करना शुरू कर दिया और उसने सोचा इस बार वह अपने और बाहरी दुनिया के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी करेगी कि कोई भी बाहर का व्यक्ति उसे तोड़ न पाए...और वह एक बार फिर अपने परिवार और कुछ साथियों के बीच ही सीमित होकर रह गयी...पर वह खुश थी क्योकि उसकी असली दुनिया तो यही थी...:):):)