एक सर्द शाम खिड़की पर बैठी सोच रही थी बस यूँ ही,
कुछ थे सवाल जिनके जवाब मैं ढूंढ रही थी बस यूँ ही ॥
जवाब में उनके ख्याल आते थे मुझको बार बार ,
सोचकर तन्हा ही मैं हंस पड़ी थी बस यूँ ही ॥
ओस की इक बूँद सी आकार गिरी फिर चेहरे पर ,
हँसते-हँसते इस कदर मैं रो पड़ी थी बस यूँ ही ॥
शाम वो गुजर गयी उनके ख्यालों में यूँ ही ,
काश कट जाये जिंदगी यादों में उन्ही के बस यूँ ही ॥ :):)