Sunday, May 15, 2011

दायरा



चिड़ियों का एक परिवार एक पेड़ पर अपने घोंसले में रहा करता था...वे सब खुद में ही मगन रहते थे...एक खुशहाल परिवार था...तभी एक नन्ही सी चिड़िया ने उस परिवार में जन्म लिया...वो बहुत ही प्यारी थी और सबसे छोटी भी थी...इस कारण सभी उसे बहुत प्यार करते थे...कभी भी उसे किसी बात कमी न होती...वह अपनी माँ की लाडली थी...वो दिन भर इस डाल से उस डाल चहकती रहती थी और बहुत सारी शैतानियाँ भी किया करती थी...इसी तरह शरारतें करते और हँसते-खेलते ही उसका पूरा दिन बीत जाता था...

धीरे-धीरे वो चिड़िया बड़ी हुई...अब वह घर क अलावा बहार की दुनिया भी देखने लगी...उसने खुले आकाश में उड़ना शुरू किया...वह दुनिया उसके लिए बिल्कुल नई थी...उसने कई दोस्त बनाये अच्छे दोस्त जिनके साथ वह काफी ऊँची उड़ाने भरा करती थी...पर कुछ ऐसे भी थे जो उसे परेशान किया करते थे...शुरुआत में वो थोड़ा घबरायी क्योंकि उसने आजतक सिर्फ प्यार और अपनापन ही देखा था और यह व्यवहार उसके लिए बिल्कुल नया था...पर फिर उसने खुद को हिम्मत देते हुए तय किया की वो उन सबका सामना करेगी...पर वो नन्ही सी चिड़िया ज्यादा दिनों तक उनसे न लड़ सकी और उसने हार मान ली...तब उसने तय किया कि वो उन लोगों से दूर ही रहेगी....और उसने ऐसा ही किया भी...अब उसके बस कुछ गीने चुने साथी थे...अब वो उन्मुक्त गगन में उड़ने कि बजाय खुद को अधिकतर घोंसले तक ही सीमित रखती थी...और इस तरह उसने उन सब से पीछा छुड़ा लिया...

पर अब धीरे धीरे उसके अंदर की चुलबुली चिड़िया जाने कहाँ खो चुकी थी...अब वो पहले की तरह चहचहाती नहीं थी...शरारतें भी कम हो गयी थी...शायद यह कहना ठीक होगा कि वो समय से पहले ही बड़ी हो चुकी थी...बचपना तो जैसे कहीं खो ही गया था...समय बीतता गया अब वो अपनी किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी थी...वह अपने सीमित दायरे में ही रहती थी...बस कुछ संगी-साथी जिनके साथ कुछ समय वो खुले आकाश में उड़ा करती थी पर जाने किससे खुद को हमेशा बचाने के प्रयास में लगी रहती थी...उसके हाव-भाव से भले न लगता हो पर अंदर से वह हमेशा ही थोड़ी सहमी सी रहती थी...और इन्ही कारणों से उसमे आत्मविश्वास कि भी काफी कमी थी...

समय बीता उसकी मुलाकात एक चिड़े से हुई...वह बहुत ही अनोखा था...अब चिड़िया का अधिकतर समय उसी के साथ बीतने लगा...वो दोनों काफी देर तक खुले असमान में दूर तक उड़ते.... चिड़े के साथ होने पर जैसे उसे और किसी बात कि कोई फिक्र ही नहीं होती थी... चिड़िया के अंदर आत्मविश्वास फिर बढ़ने लगा ...अब उसे किसी का डर नहीं था बल्कि वह सबका सामना करने को हमेशा तैयार रहती थी...उसके अंदर कि छोटी सी चुलबुली चिड़िया फिर से जाग उठी थी...वह फिर से चहचहाने लगी थी...उसने अपनी उड़न का दायरा बढ़ाना शुरू किया पर उसने कुछ सीमाएं अभी भी बना रखी थी जो उसके माता-पिता द्वारा तय किये गए थे...पर ये दायरा किसी डर की वजह से नहीं बल्कि प्यार की वजह से था...तभी एक दिन ऐसा आया की उस चिड़े को वह जगह छोड़ कहीं और जाना पड़ा...और चिड़िया को एक नया जीवन देकर वह वहाँ से चला गया...पर चिड़िया उसे कभी भूली नहीं बल्कि हर दिन वो उसे एक बार मन ही मन धन्यवाद जरूर करती थी...क्रमशः......

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