Sunday, April 25, 2010

धातु हस्तशिल्प (metal handicraft) :बिहार का एक प्रमुख हस्तशिल्प

बिहार के हस्तशिल्पों में धातु हस्तशिल्प (metal handicraft) का अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है। इस लेख के जरिये हम धातु हस्तशिल्प को और अच्छे से और विस्तार में जान सकेंगे।


इतिहास (history of metal handicraft in Bihar)

गुप्त कल में बिहार का कुर्किहार पीतल एवं कांसा धातु के प्रमुख केंद्र के रूप में विश्व प्रसिद्ध था। इतिहास में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि बिहार के धीमन तथा विठपाल नामक दो कलाकारों ने एशिया के विभिन्न देशों के कारीगरों को पीतल एवं कांसा शिल्प का ज्ञान दिया।

आवश्यक सामग्री (raw materials)

पीतल के सामान बनाने में तांबा तथा जस्ता का प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी पुराने पीतल का प्रयोग करके भी पीतल के सामान बनाये जाते हैं। कांसे का सामान बनाने में टिन तथा तांबा का प्रयोग किया जाता है। इनके अतिरिक्त इन धातुओं द्वारा सामान बनाने में विभिन्न प्रकार के औजारों का प्रयोग होता है। तेजाब, खटाई, सरेस, बालूदार कागज इत्यादि की भी आवश्यकता पड़ती है।
हस्तशिल्प द्वारा बने सामान (articles)




































द्वारा विभिन्न प्रकार के बर्तन बनाये जाते हैं जैसे:-कटोरी, सूप, ग्लास, चम्मच, कलछी, हांडी, लोटा, तसली इत्यादि। इसके द्वारा देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बनती हैं साथ ही साथ इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के सिंदूरदान, घंटियाँ इत्यादि भी बनती हैं।इन धातुओं से बनी वस्तुएं का उपयोग अधिकतर पवित्र कामों जैसे:- पूजा-पाठ, शादी-ब्याह इत्यादि में होता है।

तकनीक (technique)

पीतल का सामान बनाने के लिए सबसे पहले तम्बा तथा जस्ता लेते हैं। जिसकी मात्रा १ कि॰ग्रा॰ तांबा तथा ७०० ग्रा॰ जस्ता के अनुपात में होती है। कांसे का सामान बनाने के लिए टिन तथा तांबे का उपयोग होता है जिसकी मात्रा २५० ग्रा॰ टिन तथा ७५० ग्रा॰ तांबा इसी अनुपात में होती है। इसके आगे दोनों को बनाने विधि एक सामान ही होती है। सबसे पहले घड़िया (एक विशेष प्रकार
का बर्तन) में तांबे को डालकर भट्ठी के ऊपर रखकर गर्म करते हैं। जब तांबा गलने लगता है
तब उसमें टिन डालते हैं फिर जब वो पूरी तरह गर्म होकर गल जाता है तब उसे सांचे (लोहे से बना होता है) में डालकर गोलाकार बनाते हैं फिर उसे दबाकर पतला करके पत्तर की तरह बनाते हैं। फिर उसकी कटाई करके गोल आकर देते हैं। उसके बाद उसे लकड़ी की मोहरी से पीट-पीटकर जैसा
आकार देना होता है वैसा आकार देते हैं। इस तरह से थाल , परात, प्लेट, इत्यादि बनाये जाते हैं। लोटे, हांड़ी,तसले इत्यादि को बनाने के लिए धातु की ढलाई करनी पड़ती है। इन बर्तनों के मुंह की ढलाई की जाती है तथा इसे अलग से जोड़ा जाता है। इन सामानों को बनाने के बाद उसे तेजाब में डालकर निकला जाता है तथा बाद में खटाई से मांजकर साफ किया जाता है साफ करने के बाद उसे सुखाकर सरेस से रगड़कर चमकाया जाता है अंत में हथौड़े से मार- मारकर डिजाईन बनाया जाता है। कांसे का सामान बनाने के पश्चात् उसे तेजाब में नहीं डाला जाता है।

4 comments:

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