चलते चलते ये कहाँ आ गयी हूँ मैं ,
कोई भी चेहरा पहचाना नहीं लगता।
किसी से भी रिश्ता पुराना नहीं लगता ,
जाने कहाँ गए वो पहचाने हुए चेहरे ,
कल तक लगते थे जो मुझे मेरे ।
आज है तन्हाई कोई पास नहीं है ,
किसी से अपनेपन का अहसास नहीं है ।
ढूंढती है नजरें उनको ही आजकल ,
कल तक जो होते थे साथ हर पल ।
सोचती हूँ तन्हा बैठे मैं हर पल,
क्या लौटकर आयेंगे मेरे सुनहरे पल ???:(
कोई भी चेहरा पहचाना नहीं लगता।
किसी से भी रिश्ता पुराना नहीं लगता ,
जाने कहाँ गए वो पहचाने हुए चेहरे ,
कल तक लगते थे जो मुझे मेरे ।
आज है तन्हाई कोई पास नहीं है ,
किसी से अपनेपन का अहसास नहीं है ।
ढूंढती है नजरें उनको ही आजकल ,
कल तक जो होते थे साथ हर पल ।
सोचती हूँ तन्हा बैठे मैं हर पल,
क्या लौटकर आयेंगे मेरे सुनहरे पल ???:(
wah wah.......miss kaviyatri;)
ReplyDeletehoon nai abhi ban rahi hoon..:):)
ReplyDeletewaah waah waah....bahot achche..:)
ReplyDeleteइस नव उपभोक्तावादी युग में हर चेहरा अजनबी हो गया है.रिश्ता पुराना क्या यहाँ तो कोए रिश्ता ही नहीं पनपता.तन्हैयाँ हैं तो अच्छी हैं वही साथ देती हैं.
ReplyDeleteश्वेता जी अच्चा प्रयास हम आपकी और कविता पढना पसंद करेंगे जल्दी डालें
acha hai..... keep going
ReplyDeleteDI MAINE KUCH ROMANTIC LIKHA HAI DEKHIYE NA
ReplyDeletebeautiful!! keep writing!! read mine as well!!
ReplyDeletevisit my blog, i also have similar stuffs...
kuch apnii kuch apne- walon ki talash .?.
ReplyDeletekuch hamri kehee bhi padho ab .pe ho kehan aap?
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव हैं..
ReplyDeleteपर चलना ही ज़िन्दगी है ...
लिखते रहिये....